हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफिज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने पिछले वर्ष रमज़ान मुबारक की शुरुआत में मुबल्लिगीन के नाम एक संदेश जारी किया था जिसे हम दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अपनी धार्मिक सभाओं (मजलिस) को हज़रत अबा अब्दुल्लाह हुसैन (अ.स. के ज़िक्र से रौशन करें अपने संदेश के एक भाग में उन्होंने धर्म की तब्लिग़ में महिलाओं की अहम भूमिका पर बात करते हुए कहा कि महिलाओं के प्रभाव को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और हमें उनकी हर संभव सहायता करनी चाहिए।
उनके संदेश का सारांश निम्नलिखित है:
1- मजलिस-ए-हुसैनी (अ.स.) का महत्व:
मजलिस-ए-हुसैनी (अ.स.) पर ध्यान दें और लोगों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करें ताकि वे अहले बैत (अ.स.) के फाज़यल से लाभान्वित हों और उनके मसायब पर आंसू बहाकर ईश्वर का सामीप्य प्राप्त कर सकें।
2- बुजुर्गों की संगत:
बुजुर्गों की बैठकों में शामिल हों उनके अनुभवों से सीखें। इससे आपसी प्रेम एकजुटता और विश्वास बढ़ेगा।
3- समाज पर नज़र रखना:
मुबल्लिगीन को आम लोगों के पास जाना चाहिए और उनकी स्थिति पर ध्यान देना चाहिए इससे रोज़ा न रखने वालों और रमज़ान के अपमान करने वालों को सबक मिलेगा जिनके पास शरीयत का वैध कारण हो, उन्हें भी सार्वजनिक रूप से खाने-पीने से बचना चाहिए।
4- युवाओं को मजलिस से जोड़ना:
युवाओं को मजलिस में भाग लेने के लिए प्रेरित करें ताकि उनके दिलों में ईमान, नैतिकता और धार्मिक सिद्धांतों की मज़बूती आए और वे दुश्मनों के वैचारिक और सांस्कृतिक हमलों से सुरक्षित रहें।
5- महिलाओं की भूमिका:
मुस्लिम महिलाओं पर विशेष ध्यान दें और धर्म प्रचार (तब्लिग़) में उनकी सहायता करें क्योंकि समाज में महिलाओं का गहरा प्रभाव होता है।
6- शहीदों के परिवारों की देखभाल:
प्रवचनकर्ताओं को चाहिए कि वह शहीदों के परिवारों की भौतिक और आध्यात्मिक सहायता करें शहीदों के अनाथ बच्चों का विशेष ध्यान रखें और उनका सम्मान करें।
हर साल रमज़ान का महीना ईश्वर की ओर से एक बहुमूल्य उपहार है, जिसके माध्यम से हमें उसकी दया और कृपा प्राप्त होती है। हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमें इस पवित्र महीने में नमाज़, रोज़ा और पैगंबर (स.) व अहले बैत (अ.) के अनुसरण की तौफ़ीक़ प्रदान करे।
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